Bharat Mein Loktantra Visheshtayein Pirayein Avm Parivartan (भारत में लोकतंत्र विशेषें, विशेषताएं, एवं परिवर्तन)
यह किताब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं और संगोष्ठियों में प्रकाशित व प्रस्तुत ऐसे लेखों का संकलन है जो भारत में लोकतंत्र के गतिविज्ञान पर विचार करते हैं। निश्चित रूप से हमने लोकतंत्र के बुनियादी अभिलक्षणों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है, तथापि हमारी लोक चेतना में लोकतंत्र की जड़ें बहुत गहरी नहीं हैं। इस कारण हमारे लोकतंत्र को कई प्रकार की पीड़ाओं से गुजरना पड़ा है, जैसे अपराधीकरण, सांप्रदायिकता, जातिवाद और भ्रष्टाचार आदि। लोकतंत्र अनिवार्य रूप से एक दृष्टिकोण है : तार्किकता, सहिष्णुता और समझौते का दर्शन है। निस्संदेह लोकतंत्र का सारत्य जनता की भागीदारी में निहित है। इतिहास से हमने जो सबक सीखे हैं, उनके आधार पर हमारे लोकतंत्र के संक्रमण काल को पूर्ण स्वतं में परिणत किया जा सकता है। राष्ट्रवाद एक विशिष्ट आधुनिक संवृति है। इसे मन की एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें व्यक्ति को लगता है कि राष्ट्र राज्य के प्रति सर्वोच्च धर्मनिरपेक्ष वफादारी का एहसानमंद है। विश्व राजनीति में राष्ट्रवाद का तात्पर्य लोगों के साथ राज्य या राष्ट्र की पहचान या विज्ञान के सिद्धांतों के अनुसार राज्य की सीमा निर्धारित करने को नीयता से है। इतिहास में सर्वत्र, मनुष्य को अपने पैतृक मिट्टी अपने माता-पिता की परंपराओं और क्षेत्रीय अधिकारियों की स्थापना से जोड़ा राष्ट्रवाद ने विशेष और संकीर्ण, भिनता और राष्ट्रीय विशेषता पर बल दिया है। राष्ट्रवाद के विकास के क्रम में यह प्रवृत्तियाँ अधिक स्पष्ट होती. भारतीय राष्ट्रवाद इसके लक्ष्यार्थ से कतिपय अर्थों में अलग है। य से भारत शायद ही कभी एक ही राज्य रहा हो। कभी-कभी राज्यों के पैरों में एक बड़ा राज्य होता था, बल्कि कभी-कभी ऐसा भी नहीं होता था, बस छोटे राज्यों की एक सभा एक दूसरे के साथ और निरंतर बदलाव की स्थिति में होती थी।
₹ 210 ₹231
231
Pages : | 153 |
Made In : | India |