Ishopanishad ( ईशोपनिषद )
प्रस्तुत पुस्तक ईशोपनिषद् में कर्म और ज्ञान का समाहार किया गया है। ईशोपनिषद् कर्ममय जीवन का ज्ञानमय जीवन के साथ सामंजस्य स्थापित करती है। प्रकृति-पुरुष, योग-त्याग, कर्म-निष्कर्म, व्यक्ति समाज, अविद्या विद्या, भौतिक-अध्यात्म, कर्म ज्ञान, जन्म-मृत्यु, उत्पत्ति-विनाश, सगुण ब्रह्म-निर्गुण ब्रह्म, इन सबका सातिशय सुष्ठु इस लघुकाय उपनिषद् के शांति पाठ सहित अठारह मंत्रों में उपन्यस्त है। इस पुस्तक के अवगाहन मात्र से मानव जाति घृणा-द्वेष, आतंक, कुत्सा और संकीर्णत से मुक्त होकर जीवन-यात्रा को स्वर्गापय बना सकेगा। संसार में तांडव करता आतंक ज्ञान के नर्तन में विहंस उठेगा। उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र और गीता-ये वेदान्त दर्शन के तीन प्रस्थान हैं। इन्हें प्रस्थान-त्रयी कहते हैं। इनमें उपनिषद् श्रवणात्मक, ब्रह्मसूत्र मननात्मक और गीता निदिध्यासनात्मक है। सभी सम्प्रदायों-अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, शुद्धाद्वैत, द्वैत और शिवाद्वैतादि की आधारभूता प्रस्थानत्रयी हैं । इस प्रस्थान-त्रयी के आधार पर ही सभी सम्प्रदायाचार्यों ने अपने-अपने विचारानुसार विवेचनात्मक व्याख्या कर के परम सत्य का अन्वेषण किया है । उपनिषदों का प्रादुर्भाव वेदों के अत्युच्च शीर्षस्थानीय भागों से हुआ है, जिन्हें प्रायः वेदान्त, ब्रह्मविद्या अथवा आम्नायमस्तक कहते हैं। वस्तुतः उपनिषद् ही ब्रह्मविद्या के आदि स्रोत हैं । वेदों की प्रत्येक शाखा से सद्ध एक-एक उपनिषद् है। वेद अनन्त हैं, अतः उनकी शाखाएँ भी अनन्त ही होगी। शाखाओं की अनन्तता के कारण उपनिषदों की भी अनन्तता ही सिद्ध होती है। वेदों की अनेक शाखाएँ इस समय विलुप्त हैं
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Pages : | 153 |
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