Maghi Lokgeeton Mein Muhavaro Aur Lokoktiyon Ka Samajshastra ( मगही लोकगीतों में मुहावरो और लोकोक्तियों का समाजशास्त्र )
भाषा और साहित्य में घनिष्ट सम्बन्ध है । भाषा बदलती है तो साहित्य के प्रतिमान स्वयंमेव बदल जाते हैं। साहित्य से ही भाषा को पहचान होती है। लोकगीत साहित्य की एक विद्या है और मुहावरें तथा लोकोक्तियाँ भाषा का एक अंग। एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती । साहित्य के इस विद्या में मुहावरों और लोकोक्तियां का विशेष स्थान है। गाँव में खेत-खलिहानों में बाग-बगीचों में काम करने वाले लोग, भैंस चराते चरवाहे, गाँव की भोली-भाली महिलाएँ भी मस्ती के साथ विभिन्न प्रकार के गीतों को गाते और हर्षित होते हैं। मगही लोकगीतों में मुहावरों और लोकोक्तियों का समाजशास्त्रीय अध्ययन से हमारा तात्पर्य साहित्य में अभिव्यक्त सामाजिक घटनाओं के सम्यक विश्लेषण से है। सामाजिक घटनाओं में प्रमुखतः उस समाज को संस्कृति, सभ्यता, भाषा, शिक्षा, कला, जाति, गोत्र, विवाह, परिवार, समूह, समिति, संस्था, प्रथा, धर्म-सम्प्रदाय, लोक विश्वास, दर्शन, राजनीति, अर्थनीति आदि की गणना की जाती है। इसी से सामाजिक मनुष्यों की आंतरिक बाह्य क्रियाएँ प्रकट होती है। भारतीय लोक जीवन का समय चित्रण गीतों में उपलब्ध है। गीत हो सबसे सशक्त माध्यम है जिसमें प्रत्यक्ष रूप से किसी पटना एवं काल विशेष का चित्रण मिलता है।
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