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आधुनिक भारत में मुस्लिम राजनीतिक चिंतन का विकास (Aadhunik Bharat mein Muslim rajnitik Chintan ka Vikas)

भारत स्वतंत्रता संग्राम में मुसलमानों की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उन्होंने 1857-50 के विद्रोह में हिन्दूओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया और अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन को चुनौती दिया। अंग्रेजों ने मुसलमानों को सत्ता से बेदखल कर भारत की बागडोर को अपने हाथों में लिया था। मुसलमानों को हिन्दूओं ने भारत का शासक स्वीकार किया था और दोनों समुदायों के लोगों ने मिलकर भारत को मजबूती प्रदान किया था। अंग्रेजों के हाथों अपनी खोयी हुयी सत्ता को हासिल करने के लिए सैयद अहमद बरेलवी के नेतृत्व में बहावी आंदोलन की शुरुआत हुयी, जिसे कुचल दिया गया। 1857 के विद्रोह में हिन्दू एवं मुसलमानों ने मिलकर मुगल सम्राट् बहादुर शाह जफर को हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित किया। विद्रोह के समाप्त होने के बाद भी मुसलमानों को दंड दिया गया। सर सैयद अहमद खाँ ने मुसलमानों को सदियों से व्याप्त कुरीतियों से मुक्त होने को कहा। यह तब सम्भव था जब मुसलमान आधुनिक शिक्षा को अपनाते और अपने विचारों में वैज्ञानिकता को स्थान देते। दूसरी ओर, हिन्दू-मुस्लिम एकता से अंग्रेज भयभीत हो गये। उन्होंने दोनों समुदायों बीच फूट डालकर राज करने की नीति अपनाया। डब्ल्यू. डब्ल्यू. इंटर के द्वारा 'इंडियन मान्स' की रचना ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया। सर सैयद अहमद खाँ अब तक हिन्दू-मुस्लित एकता के महान् कायल थे और हिन्दुस्तान उनका मादरे वतन् था। धीरे-धीरे अंग्रेज अधिकारियों एवं शिक्षाविदों के सान्निध्य में वे आयें और उन्हें लगने लगा कि अखिल भारतीय कॉंग्रेस पार्टी हिन्दुओं की पार्टी है। उसके द्वारा मुसलमानों का भला नहीं हो सकता है। कॉंग्रेस के समानान्तर उन्होंने पैट्रियोटिक एशोसिएशन की स्थापना की। हिन्दू सम्प्रदायवादियों की उन्होंने भत्सना की। कुछ इतिहासकारों ने उन्हें मुस्लिम साम्प्रदायिकता के जनक के रूप में देखा है। लेकिन यह सत्य से परे हैं। उन्होंने अपने समाज के लिए वही काम किया जो काम राजाराममोहन राय ने अपने समाज के लिए किया। अपने विचारों को मूर्तरूप देने के लिए उन्होंने अलीगढ़ आंदोलन की शुरुआत की और कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जिसमें पाश्चात्य शिक्षा एवं विज्ञान को काफी तरजीह दिया गया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय इनमें से एक था।


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