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कुछअपनी : कुछ देश की (Kuchh apni Kuchh desh ki)

लेखक ने अपने जीवन काल में अपनी आत्मकथा की पांडुलिपि मेरे हाथों में दी थी और इसको प्रकाशित करने का भार मुझे सौंपा था। तब से जब कभी मैंने चाहुलिपि पर सरसरी निगाह दौड़ाई तो ऐसा लगा कि सरम और रोचक ढंग से लिखी गई इस आत्मकथा में राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित अनेक महत्त्वपूर्ण एवं विचारणीय बातें हैं। चंपारण के निलहे साहवों के विरुद्ध गाँधीजी द्वारा चलाए गए संघर्ष का राजीव वर्णन इस आत्मकथा में है। इसमें गाँधीजी के कुछ ऐसे पत्रों का भी समावेश हुआ है जिनमें 'असहयोग', 'श्रम', 'शिक्षा', जैसे गंभीर विषयों के बारे में उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए हैं। अंत में लेखक के नाम तेजबहादुर सप्रु का एक लंबा पत्र तत्कालीन राजनीतिक समस्याओं से सम्बन्धित उनके विचारों की जानकारी देता है। 1917 ई में जब गाँधीजी पहली बार मुजफ्फरपुर आए तो जिन कुछ विशिष्ट लोगों को उन्होंने अपना विश्वास भाजन बनाया उनमें जनकधारी बाबू का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। डा० कालीकिकर दत्ता द्वारा लिखित 'फ्रीडम मूचमेंट इन विहार, उनके द्वारा सम्पादित 'राइटिंग्स एण्ड स्पीचेज़ ऑफ महात्मा गाँधी रिलेटिंग टु बिहार, 1917-1947', तथा डा. बी. बी. मिश्र द्वारा सम्पादित 'सिलेक्ट डॉकुमेंट्स ऑन महात्मा गाँधीज मूवमेंट इन चंपारण' में उनके ऐतिहासिक कृत्यों का उल्लेख हुआ है। मुजफ्फरपुर जिले के स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास जनकधारी बाबू के कार्यकलापों की चर्चा किए बिना नहीं लिखा जा सकता। उन्होंने ही 1916 ई- में मुजफ्फरपुर जिला 'होम रूल लीग' की स्थापना की थी और वे इस संस्था के मंत्री के रूप में कार्य करते रहे। फिर जून 1920 ई में उन्होंने मौलवी मु शफी दाऊदी के मकान पर नगर के गण्यमान्य व्यक्तियों की सभा बुलाई, जिसमें "होम रूल लीग' का विघटन कर 'मुजफ्फरपुर जिला काँग्रेस कमिटी की स्थापना की गई। उसी सभा में वे जिला काँग्रेस कमिटी के मंत्री चुने गए और लगातार पन्द्रह वर्षों तक इस पद पर रहे।


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