कर्पूरी ठाकुर का राजनीतिक दर्शन (karpuri Thakur ka rajnitik darshan)
प्रस्तुत पुस्तक कर्पूरी ठाकुर का राजनीतिक दर्शन शोध ग्रन्थ पर आधारित पुस्तक है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि कर्पूरी ठाकुर के चिंतन में विश्वास रखने वाले लोगों के मानस पर यह एक गहरा छाप छोड़ेगा। विद्वान घर में पैदा होकर विद्वान बन जाना कोई मायने नहीं रखता, लेकिन एक अनपढ़ घर में पैदा होकर विद्वान बन जाना बहुत बड़ी बात होती है। कर्पूरी जी एक शोषित और पद्दलित परिवार में पैदा हुए, लेकिन कई दशकों तक वे बिहार और देश के गरीब लोगों का तकदीर को लिखते रहे। चाहे बिहार के मुख्य मंत्री के रूप में हो या बिहार के विपक्ष की राजनीति में रहे हो, वे हमेशा गरीब और शोषितों के मुखर आवाज रहे हैं। आशा है कि यह पुस्तक पाठकों के आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सहायक सिद्ध होगी। मेरा आग्रह है कि पाठक अपने बहुमूल्य सुझावों से मुझे अवगत कराने की कृपा करेंगे। कर्पूरी ठाकुर का जीवन एवं व्यक्तित्व-जननायक स्वर्गीय श्री कर्पूरी ठाकुर का बहुआयामी बहुमुखी बहुप्रशस्ति, बहुचर्थित बहु-आलोचित, नितान्त विवादास्पद एवं वरेण्य था। बिहार प्रांत के हर कार्य हर नगर, हर ग्राम, हर झोपड़ी, कर महल में स्वर्गीय ठाकुर होती थी एवं हर जगह उनके जानने वाले लोग थे। सब लोग उनकी कर्मठता, ईमानदारी, त्याग, मेधा, ओज एवं साहस के कायल थे। उनकी मृत्यु को बस एक वर्ष ही पूरा हुआ है। इसलिए देश में खासकर बिहार के जनमानस पर उनकी स्मृति अभी धूमिल नहीं हुई है एक ओर उनके प्रशंसक उन्हें पूजनीय मानते थे. उनके लिए वह असीम, शोषण उत्पीड़न के मुक्तिदाता, जननायक, गरीबी शोषणा के उन्मूलन एवं दरियों के नारायण थे। उनकी नजरों ठाकूर युगप्रवर्तक संन्यासी, वैरागी, निर्मिक स्थितप्रज्ञा एवं योद्धा थे, तो दूसरी ओर उनके आलोचकों एवं विरोधियों की भी कमी नहीं थी। उनकी दृष्टि में वे स्वार्थी, पदलोलुप एवं समान भंजक थे। परंतु इनके विरोधी या तो स्वार्थ की राजनीति से प्रेरित है अथवा किसी पूर्वाग्रह से प्रस्त है। किसी राजनेता का प्रबल विरोध नहीं हो, वह मुदां राजनीति है, तेजस्वी नेता नहीं है। लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस जय प्रकाश और होहिया जैसे तेजस्वी लोगों के भी बड़ीसादाद में विरोधी थे। इस दृष्टि से भी कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक सशक्त राजनीति और ईमानदार नेता थे।" "जो कुछ भी हो इतना तो सत्य है कि पीडित मानवता के इस पुजारी ने भाग्य की विडम्बना, कुत्सित उपेक्षा, लोक उपहास और अनेक विषम परिस्थितियों के बीच जिस पौरुष अधिवलित उत्साह, धैर्य, निष्ठा तपस्या एवं त्याग का आदर्श उपस्थित किया है वह मानव के लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में स्मरणीय रहेगा। ठाकुरजी लगातार हगभग साढ़े चार दशक तक बिहार में गैर-कांग्रेसवादी राजनीति की बागडोर संभाले रहे। इसमें इन्होंने पूर्ण निपुणता एवं दक्षता का परिचय दिया। ये ऐरे मेरे हक नहीं है. एक चतुर साथी है। गाड़ी होते हैं तो उनकी दृष्टि बाई-दक, झाड़-झा और ठोकरों को पहचानती और सती है। व्यक्ति की पहचान करने की जैसी दृष्टि इस नेता के पास है, यह सूक्ष्मता बहुत ही कम राजनीतिज्ञों को मिली है। ख
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