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गुप्त काल में शूद्रों की स्थिति Guptkaal Mein Shudron Ki Sthiti
पुस्तक गुप्तकाल में शूद्रों की स्थिति अनेक विद्वतजनों और आत्मीयों के सहयोग का सुपरिणाम है। उल्लिखित काल में शूद्रों की उत्पत्ति और उनके को स्थिति स्पष्ट करते हुए वैदिक और वैरिकोत्तर काल में उपेक्षित और सूदों की गुप्तकालीन सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं कानूनी स्थिति पर सम्पर्क विचार किया गया है। इस काल में शूद्रों का सामाजिक और आर्थिक समुन्नयन हुआ, उनको राजनैतिक पहचान और अस्मिता बनी, कानूनी हैसियत में संवर्द्धन हुआ जिससे इनका कानूनी कद भी तत्कालीन समाज में समाप्त हुआ। प्रस्तुत पुस्तक लेखन में मैंने बहुतों से सीखा है, बहुतों से ग्रहण किया है। लेकिन समस्त विद्वानों में अपनी सबसे अधिक हार्दिक कृतज्ञता अपने पर्यवेक्षक और निदेशक डा० शत्रुघ्न शरण सिंह, प्रोफेसर प्राचीन भारतीय इतिहास एवं विभाग पटना विश्वविद्यालय, पटना के प्रति ज्ञापित करता हूँ जिनके अमूल्य विचार, निर्देश और सुझाव ही इस शोध की आधारशिलाएं हैं। वस्तुत: दुर्लभ मानवीय गुणों से भरे श्रद्धेय निदेशक डा० शत्रुघ्न शरण सिंह की तत्परता, और स्नेहि आग्रह तथा दायित्व पूर्ण निदेशन ही मेरे लिए पूर्ण प्राधेय बनी में अपने सुधी पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो० डा० भगवन्त सहाय, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व को कैसे विस्मृत कर दूँ जिनका शास्वत मार्ग निर्देशन मेरे और अभिनंदनीय रहा है। मैं पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो० डा० का भी प्रणी हूँ जिन्होंने मुझे समय-समय पर इस शोध कार्य में योगदान दिया। मैं सर्वात्मना नतमस्तक हूँ अपने माता पिता तथा अपने विपिन कुमार डी०एम० (हृदयरोग) निम्स हैदराबाद और परिजनों के जिनके सौजन्य से हसे भरी शैशव मानसिकता और अपरिपक्क विचार को अभिनव आयाम अभिनव सम्पुष्टि लुब्ध हुई ।
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Pages : | 153 |
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