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जीव जगत्और माया ब्रह्म (Jeev Jagat aur Maya Braham)

संसार की अनन्त श्रृंखला में प्रत्येक जीव अपने कर्म और भोगों के कारण पुनः पुनः कर्ता और भोक्त बनता है। आज के कर्म पूर्व जन्म के कर्म है। कर्म जीव के भाग्य में परिवर्तन लाते हैं । कर्म से एक नये क्षण को प्राप्त करते हैं । यह नया एक क्षण ही मुक्ति का कारण बन सकता है । तत्त्व ज्ञान ही मोक्ष है । तत्त्व ज्ञान वास्तव में क्या है ?तत्त्व ज्ञान से कैसे मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है? यह समझ लेना कि जीव, आजीव और निर्जीव सभी पद-पदार्थ हैं एक ही मुक्ति या मोक्ष है। जब कोई यह जान ले कि जो सब है वहीं मैं हूँ और जो मैं हूँ वही सब है तब क्यों विश्व में आतंक और युद्ध की विभीषिका हो प्रस्तुत पुस्तक में उपर्युक्त वार्ता को सरल और विश्लेषणाला गर्वको गई है। निश्चय ही पाठकों को ज्ञान से सुमित को समझने में सहायता मिलेगी । प्राचीन वैदिक वाङ्गमय पूर्णत: सभ्य नहीं है। वेद का अर्थ होता है ज्ञान । वेद चार भागों में विभक्त है-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ये चारो वेदों की शाखायें अथवा व्याख्या कुछ अंशों में कहीं कहीं प्राप्त होता है। इन वेदों के वास्तविक अर्थ को समझने के लिए अध्यात्मिक ज्ञान और विज्ञान दोनों की आवश्यकता है। सम्पूर्ण बंदों में जो विभिन्न देवी-देवताओं के साथ-साथ पेड़-पौों के अतिरिक्त पत्थरों और तलवारों से प्रार्थनाएँ और कार्य पूर्ण करने का जो आग्रह किया है उसे समझने के लिए हमें चैतन्याश को भी समझना होगा। इस चैतन्याश की व्याख्या जानना होगा। जो वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया है, जो आज यह सिद्ध हो चुका है कि संसार के समस्त जीव और निर्जीव पदार्थ एक मात्र अणु और परमाणुओं का एक विशेष संघटन मात्र है। अब तो इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और प्रोटोन से सूक्ष्म पदार्थ वैज्ञानिकों ने खोज निकाला है जिसे वैदिक वाङ्गमय चैतन्याश कहता है। दर्शन जिसे 'पाक' कहता है। किन्तु आज जो मुख्यतः वेद को मानते हैं वे कर्मकाण्डी है। वैदिक मंत्रों से पूजा-पाठ करा देते हैं किन्तु उनके निहितार्थ को जानते है और न जानने का प्रयास ही करते है। यदि कर्माण्डी स्वयं नहीं जानते हैं तब अपने यजमान को कैसे समझा सकते हैं। फिर भी आज के कर्मकाटी इतना तो जानते हैं कि यज्ञों के चार पुरोहित होते हैं। होता जो सोम अन्य द्रव्यों के भोग के लिए देवों का अहवान करने के लिए ऋग्वेद के मंत्रों का पाठ करते हैं। उद्गाता जो सामवेद के गान से सोमादि बनाने में सहयोग देते हैं। अथर्ववेद जो से पवित्र कर्म को पूरा करते हैं। यजुर्वेद के निर्देशनुसार ब्रह्मा जिस पर सम्पूर्ण यज्ञ का भार होता है। इन पदों की व्याख्या समझने में बंद के ब्राह्मण और अरण्यकों ने मदद की है। वैदिक और ज्ञान और सूक्ष्म होते गये और जब दार्शनिक कान्ति हुई तब जा कर वैदिक अर्थ कुछ मात्रा में जनमानस में उत्तरा बंदों से जो ज्ञान की पिपासा बढ़ी वह वेदान तृप्त हुई। चालक के द्वारा प्रतिपादित मोक्ष की भौतिक विचारधारा से आरंभ कर हस बढ़ जाते हैं और शंकराचार्य के अद्वैत वेदान्त में जिज्ञासा की पूर्णतः शान्ति पाते हैं वैरिकको पृष्ठभूमि में मैने कुछ दार्शनिक साओं की व्याख्या सहज एवं सरल का प्रयास किया है।ध


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