डॉ. राधाकृष्णन का समाज दर्शन एक दृष्टि (Radhakrishnan ka Samaj Darshan Ek Drishti)
प्रस्तुत पुस्तक 'डॉ० राधाकृष्णन का समाज-दर्शन' में डॉ० राधाकृष्णन के विचार में समाज दर्शन का प्रमुखता से रेखांकन किया गया है। इस पुस्तक के प्रथम अध्याय में समाज दर्शन का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। आगे के अन्य अध्यायों में डॉ० राधाकृष्णन के जीवन एवं दर्शन से प्रारंभ कर उनके सामाजिक विचारों को प्रासंगिक बताते हुए उपसंहार के अंतिम अध्याय तक का सविस्तार वर्णन प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक का सरोकार सामाजिक जीवन के व्यावहारिक अभ्यास पर आधारित है। इसमें उपनिषद् के 'तत् त्वम् असि' (वैयक्तिक अनुशासन द्वारा सामाजिक समायोजन से 'अहं प्रधारिण (सर्वमुक्ति) का क गत्यात्मक रूप प्रदर्शित हुआ है। मनुष्य जीवन के सोपानों (ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास) के रूप में कठोर अनुशासन एवं सामाजिक समायोजन (वर्ण अथवा कर्म आश्रित कर्तव्यों द्वारा आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक आदि विविध गतिविधियों) द्वारा जन-कल्याण का विस्तृत भाव इस पुस्तक में वर्णित है। अतः मेरी इस पुस्तक का व्यैय वैयक्तिकता में सामाजिकता एवं सामाजिकता में वैयक्तिकता का निदर्शन है। जिस तरह व्यक्ति के सम्मिलन से समाज निर्मित होता है एवं पुनः जिस तरह समाज का स्वरूप होता है, उस तरह के व्यक्तियों का यहाँ सृजन होता है यह भाव जितना सहज एवं नैसर्गिक है, बिल्कुल वैसा ही है वैयक्तिकता में सामाजिकता एवं सामाजिकता में वैयक्तिकता।
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Pages : | 153 |
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