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दिनकर-काव्य का सांस्कृतिक अध्ययन (Dinkar-kavya ka sanskritik adhyayan)
दिनकर को पढ़ते हुए यह बात हर अध्येता के सामने आती है कि ये मानवता एवं राष्ट्रीयता पर अधिक बल देते है. लेकिन इसके अतिरिक्त एक और बात उनके साहित्य में विशिष्ट है कि उन्हें विशेषकर बिहार से सम्बद्ध अतीत में अतिरिक्त मोह है। वे चन्द्रगुप्त, चाणक्य, बुद्ध, वैशाली, मगध आदि के प्रति विशेष आग्रहशील है। इतना ही नहीं, वे पाटलिपुत्र की गंगा, सिमरिया घाट की गंगा, विद्यापति के गीत और मगध मिथिला, वज्जि से जुड़ी संस्कृति और प्रकृति से भी विशेष अनुराम रखते थे। राष्ट्र के पैमाने पर उनमें बिहार की आँचलिकता के प्रति विशेष अनुराग है। यहाँ के क्षेत्रीय इतिहास ( अतीत या वर्तमान) तथा यहाँ की क्षेत्रीय संस्कृति उनकी कविताओं में विशेषकर 'रेणुका' 'इतिहास के आयु' आदि में अधिक मुखर है। अत: इस दृष्टि से दिनकर जी में केवल राष्ट्रीयता और मानवता की ही प्रबलता नहीं, बल्कि संस्कृति की भी प्रबलता है। ये हमारी राष्ट्रीय संस्कृति के मानवतावादी कवि भी है। राष्ट्रकवि स्वर्गीय रामधारी सिंह 'दिनकर' मेरे प्रिय कवि है। विद्यालय की विभिन्न कलाओं के पाठ्यक्रमों में संकलित उनकी कविताओं के द्वारा उनके काव्य से प्रथम परिचय हुआ। महाविद्यालय की विभिन्न कक्षाओं में उनको कृतियाँ 'रश्मिरथी', 'कुरुक्षेत्र' आदि के अध्ययन का सुअवसर मिला तो प्रसंगवश उनकी अन्य कृतियाँ भी पड़ गई। सहजता और शीघ्र स्मरण हो जाने की क्षमता के कारण उनकी कविताओं ने न केवल प्रभावित किया, अपितु अनेक कविताएँ स्मरण भी हो गयी। कई अवसरों पर उन्हें देखने और उनका काव्य पाठ सुनने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ और इस तरह उनके काव्य के प्रति अनुरक्ति विकसित हुई। ं
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