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नहीं लौटूंगी मर जाउगी भाग-3 (Nahin lautungi Marjaaugi part-3)

इस तीसरे भाग की मीना से केवल आश्चर्यजनक बातें ही सुनने-देखने को मिलती हैं। डॉ० मुन्नी आश्चर्यजनक कार्य ही करती नजर आती है । रीना मानव-जाति के नित नवप्रगतिशील एकजुट समरस मानव बनाये रखने में पूर्ण तत्पर दिखती है और सूर्यकान्त ?वह तो सदियों बाद डॉ० मुन्नी के वैज्ञानिक प्रयासों से सशरीर स्वयं को पुनर्जीवित पाकर पूर्ण रूपेण आश्चर्यचकित दिखता ही है । क्यों कि उसे भौतिक और शरीरी सत्ता ऊर्जा सुख सम्पति शक्ति सुविधा भोगी मांसलता प्रेमी मात्र विलासी व्यक्ति और भोगी कार्यकर्ता और झूठे दम्भी लोग अब उसे खोजने से भी नहीं मिलते हैं । प्रत्येक भौतिक को अध्यात्मोन्मुख बनाते, उसे सभी नजर आते हैं और एकजुट समरस नित नवप्रगतिशील भाव से यात् प्रतीक मानवता को कहानी गढ़ते रहने की प्रतियोगिता में आगे निकलने के लिए तत्पर ही उसे सभी दिखते हैं सबका दृष्ट-बोध भी उसे बदला बदला नजर आता है । सारी व्यवस्था भी उसे बदली बदली नजर आता है। प्रथम भाग की मरी हुई मौना के पुनर्जीवित जीवनक्रम से पूर्ण साक्षात्कार कर चुके है, द्वितीय भाग में आप अपने मित्र सूर्यकान्त को खोकर आपके सामने लाने के लिए कम बेचैन नहीं रहे है तिवारी जी मुझसे तो साफ-साफ इन्होंने कह दिया प्रथम और द्वितीय भाग में तो मिल ही चुकी हो तुम मोना से उसकी बेटी मौना को मरने से बचानेवाली वेश्या रोगा से और इन सबसे जुड़ते-बिछड़ते कई कार के कई लोगों से लो, अब मिलो इस उपन्यास के तृतीय भाग में कई सौ वर्षो के पर ससुर पुनर्जीवित सूर्यकान्त से मैं भी काफी खुश हुई। अक्सर साथ-साथ रहने पर भी कहाँ खोगे रहते है तिवारी जी इसी जिज्ञासा को पूर्ण करने में किन्तु आजतक मेरी यह जिज्ञासा पूरी नहीं ही हुई पूछ कभी मुझसे, "मान लो कि अपने शरीर में से में निकल जाऊँ और उसी समय अपने इस शरीर में से तुम भी निकल जाओ तो क्या मेरी तेरी यह पहचान उस समय भी यही रहेगी ?ि


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Pages : 153
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