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पंडित दीनदयाल उपाध्याय का शिक्षा दर्शन (Pandit Dindayal Upadhyay Ka Shiksha Darshan)

पंडित दीनदयाल उपाध्याय (25 सितम्बर 1916 ।। फरवरी, 1968) एक दर्शनिक, अर्धशास्त्री, समाजशास्त्री, इतिहासकार प्रखर राष्ट्रवादी पत्रकार तथा सार्वकालिक सार्वभौमिक चिंतक विचारक हैं। उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्पित एवं जुझारू स्वयंसेवक के रूप में भी स्मरण किया जाता है। वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए विश्व को 'एकात्म मानवदर्शन' नामक विचारधारा दो। वे एक समावेशित विचारधारा के समर्थक थे जो एक मजबूत और सशक्त भारत चाहते थे। उनके जीवन-दर्शन का प्रथम सूत्र है- भारत में रहने वाला और उसके प्रति ममत्य को भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं। उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन सर्व भारतीय संस्कृति है। इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है। इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा।" उन्होंने सम्राट चन्द्रगुप्त, जगदगुरु शंकराचार्य, एकात्म मानववाद, राष्ट्र जीवन की दिशा, राजनीतिक डायरी भारतीय अर्थनीति का अवमूल्यन आदि अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। पंडित दीनदयाल उपाध्याय उन आधुनिक भारतीय विचारकों में एक हैं, जिन्होंने अपनी मौलिक व सार्वभौमिक चिंतन से समाज, राष्ट्र और विश्व को एक नवीन और समरस मार्ग प्रशस्त किया है। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानवदर्शन की नई विचारधारा दी। वे एक समावेशित विचारधारा के समर्थक थे और एक मजबूत एवं सशक्त भारत चाहते थे। उन्होंने व्यक्तिगत जीवन तथा राजनीति दोनों में सिद्धांत और व्यवहार में समानता बनाए रखने पर बल दिया। वे एक लोक-कल्याणकारी राष्ट्र के निर्माण के लिए राजनीतिक शुचिता को परम आवश्यक मानते थे। उनके रोम-रोम में राष्ट्रीयता थी और उनको राष्ट्रीयता का अर्थ भारत को माता मानकर उसकी सेवा करने में थी। ये अक्सर कहते थे- हमारी राष्ट्रीयता का आधार "भारत माता" है, केवल भारत ही नहीं। "माता" शब्द हटा देने से भारत केवल जमीन का टुक बन कर रह जाएगा। उनके राजनीतिक जीवन दर्शन का सूत्र है संस्कृति में निष्ठा उनका मानना है कि भारत में रहने वाला और इसके प्रति सत्य की भावना रखने वाला मानव समूह एक है। उनको जीवन प्रणाली कला, साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। यह संस्कृति ही भारतीय राष्ट्रवाद का आधार है और संस्कृति में निष्ठा तभी भारत एकाम रहेगा। उनको इस तीन विचारधारा को दुनिया "दर्शन" रूप में जानती है।


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