प्राचीन भारत में गुप्तचर (Prachin Bharat Mein Guptchar (Vedic period to 1200 AD)
किसी भी अनिक में गुणवर एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह केवल देश की आंतरिक तथा उससे सम्बद्ध पदाधिकारियों पर ही दृष्टि नहीं रखता है बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गुप्तचर का अर्थ है गुप्त रूप से काम करने वाला। वह या तो तरह-तरह का वेश धारण कर अपेक्षित सूचनाएँ एकत्रित करता है अथवा किसी एक स्थान पर अपना वास्तविक परिचय छिपाकर काम करता है। राजा स्वयं सम्पूर्ण राज्य के कोने-कोने में घटनेवाली घटनाओं पर दृष्टि नहीं रख सकता, इसलिए वह गुप्तचरों पर निर्भर करता है। गुप्तचरों को राजा की आँख कहा गया है। गुप्तचर राज्य में पदाधिकारियों के नैतिक आचरण तथा संभावित विद्रोहों की पूर्व सूचना राजा को देता था तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को अपने स्वामी के अनुकूल बनाता था। वह युद्ध एवं सधि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। इस पुस्तक की लेखिका ने प्राचीन में गुप्तचर व्यवस्था का भारत ऐतिहासिक सर्वेक्षण किया है। अतः पुस्तक में वैदिककाल से लेकर 1200 ई० तक के विभिन्न काला में गुप्तच की स्थिति एवं उनके कार्य का मूल्यांकन किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक में प्राचीन भारतीय गुप्तचर व्यवस्था का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है जो प्राचीन भारतीय साहित्यले विदेशी लेखकों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है। प्रस्तुत पुस्तक को आठ अध्यायों में विभाजित किया गया है। प्रथम अध्याय भूमिका के रूप में है। इसमें भारत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं स्रोतों पर प्रकाश है। द्वितीय अध्याय में वैदिक काल में गुप्तचरों की स्थिति कैसी थी इस प्रकाश डाला है। तृतीय अध्याय में वैदिकोचर अर्थात् काल में अस्य एवं कार्यों का अध्ययन प्रस्तुत किया गया
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Pages : | 153 |
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