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ब्रह्म चिन्तन Brahm Chintan

प्रस्तुत पुस्तक ब्रह्म चिन्तन का मुख्य सार संसार में लीन होकर ब्रह्म में तल्लीन कैसे हों। जब हमने भगवान् की सेवा में आत्मसमर्पण कर दिया, तब फिर हमारा समय, हमारा धन, हमारी शक्ति, मन, बुद्धि सब कुछ भगवान् का हो गया । फिर हम इनका सदुपयोग केवल भगवत्कैंकर्य में कर सकते हैं । समय का एक क्षण भी, शक्ति का एक कण भी, द्रव्य का एक पैसा भी हम व्यर्थ और निरर्थक कार्यों में नष्ट नहीं कर सकते । जिन कार्यों से न अपना उपकार होता हो, न पराये का, अपितु परिवार या समाज का अनिष्ट ही होता हो तो ऐसे कार्यों में समय, शक्ति, समझ और धन को लगाना बड़ी भूल है। व्यर्थ गपशप में, निरर्थक वाद-विवाद में, समझ, समय, शक्ति और संपदा का दुरुपयोग अक्षम्य अपराध है । कबहुँक करि कहना नर देही। देत इस बिनु हेतु सनेही ॥ आशा करते हैं कि वे कृपालु हमारी कृतघ्नता को क्षमा कर हमें पुन: दुर्लभ मानव-देह प्रदान करेंगे? फिर भी वे पुन: पुन: मानवदेह देते रहे है। इस अहेतुकी भगवत्कृपा को हमें अतिदीन भाव से संभाल कर रखना चाहिए । किसी दीन-हीन को कोई बहुमूल्य निधि बड़ी कठिनता से ही प्राप्त होती है यदि यह उसकी संभाल नहीं कर सकता तो वह अकिंचन लुट जाएगा, फिर यह निधि कहाँ पाएगा? लूटने के लिए तत्पर मायादेवी घात लगाए ही रहती हैं, निक असावधानी हुई कि लुटे। उस लुटेरी को लोग प्रत्यक्ष देख भी तो नहीं पाते तभी लुटते हैं। वे कृपालु भी इसे सहज भाव से स्वीकार करते है


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Pages : 153
Made In : India

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