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बिहार में पाल कालीन मूर्तियों का अध्ययन (Bihar mein paal kalin moortiyon ka adhyayan)
आठवी सदी के पुर्वार्द्ध में अराजकता से तंग आकर जनता और नेताओं ने बंगाल के गोपाल नामक व्यक्ति को राजा चुना, जिसने पाल राजवंश की स्थापना की। तब्वती इतिहासकर तारानाथ ने धीमान और उसके पुत्र बितपाल को पुर्वी भारत की शिल्पकला के जन्मदाता बनने का श्रेय दिया है। पाठकों को इस पुस्तक में प्राचीन कालीन पालकला का स्लेटी, स्तरीत की गई मूर्तियों का विशेषरूप से जानकारी प्राप्त. करता है। विहित शोध पुस्तक बिहार में पालकालीन मूर्तियाँ ( 800 ई० से 1200 ई० तक) प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व के शोधार्थियों के लिए हमेशा यह कौतूहल का विषय रहा है। ऐसा नहीं है कि बिहार में पालकालीन मूर्तियों का सर्वथा एक नवीन खोज है और इसपर वर्तमान में संतुष्ट होकर अन्वेषण रुक गये हैं बल्कि यह न रुकने वाली एक सतत् प्रक्रिया है जो प्रत्येक नयाँ खोड़ों और नवीन शोध के साथ शोध के कई और आयामों को सृजन कर देती है। फलतः इसके प्रति कौतूहल शोधार्थी में सदैव रहता है। अपने शोध में मैंने उपलब्ध मूर्तियों पर नई दृष्टि डालते हुए उससे संबंधित सर्वथा एक नवीन परिक्षेत्र को चुना, जो पालकालीन मूर्तियों का ईययन है। शोध से न्याय के लिए पालकालीन मूर्तियों के प्रत्येक पक्षों को त्रिआयामी अध्ययन किया है।
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Pages : | 153 |
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