भूकंप का इतिहास (Bhukamp ka Itihaas)
गाँधी जी का विचार था कि भूकंप व्यक्ति के पापों की प्रकृति द्वारा दी गई सजा है। यही कारणा था कि उन्होंने 1934 में हुए बिहार के भूकंप को लोगों के कुआछूत के पाप की सजा के रूप में देखा। गाँधी के इस कथन से कि यह भूकंप हमारे छुआछूत के पाप की सजा है, देश वासियों को बड़ा ही आश्चर्य एवं निराशा हुई। उनकी इस बात का खंडन करते हुए रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा था कि मुझे यह जानकर दु:ख हुआ है कि गाँधी जी आँख मूँद कर छुआछूत के समर्थकों को मला बुरा कह रहे है। यह कितना अवैज्ञानिक तथ्य है। 1755 ई० में एक ऐसा ही भयानक भूकंप पुर्तगाल में आया था, जिसमे लिस्बन शहर बर्बाद हो गया था। उस समय भी मजहबी लोगों ने ऐसा ही तर्क दिया था। तब वालतेयर ने अपनी कविता के द्वारा इस बात का विरोध करते हुए कहा था कि भूकप के माध्यम से ईश्वर ने अपराधियों को सजा दो। अगर इस कथन को हम मान भी लें तो उन शिशुओं का कौन सा अपराध था जो अपनी माँ की छाती से छिन्न-भिन्न अवस्था में खून से लिपटे हुए थे। क्या लिम्बन ने पेरिस, लंदन या अन्य शहरों से अधिक पाप किया था। तब क्यों परिस एवं लंदन राग-रंग में मस्त है एवं लिस्बन स्मशान बना हुआ है। अन्य शहरों से आधक पाप कि तब क्या पेरिस एवं लंदन राग-रंग में मस्त है एवं लिस्बन स्मशान बना हुआ है"। गाँधी जी के इस कथन का नेहरु ने भी विरोध किया एवं कहा कि अगर भूकंप 1. धुआहूत की सजा या फल है तो यह कैसे पता चलेगा कि यह हमारे कौन से पाप की जा है। दरभंगा महाराज ने भी गाँधी जी की बात का खंडन करते हुए कहा कि अगर भूकंप छुआछूत के पाप की सजा है तो इसे उत्तर बिहार की बजाए दक्षिण बिहार में आना चाहिए था, क्योंकि छुआछूत की भावना दक्षिण बिहार में अधिक है। डॉ. भारती शर्मा द्वारा रचित पुस्तक 'भूकंप का इतिहास' पढ़ने का सुअवसर प्राप्त रा। यह पुस्तक अभिलेखीय सामग्रियों से समृद्ध है। डॉ. शर्मा ने बिहार राज्य अभिलेखागार में जितने समय तक कार्य किया है, उसमें उनकी कर्त्तव्यनिष्ठा को देखकर इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि इस विषय पर जितने अभिलेख उपलब्ध है, उन सबों का अनुशीलन इस पुस्तक में हुआ है। इसके अतिरिक्त अन्य जगहों यथा राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली से भी अभिलेख प्राप्त कर पुस्तक को समृद्ध बनाया गया है। मूल स्रोतों पर आधारित यह पुस्तक इतिहास खासकर बिहार के इतिहास के आधुनिक काल की सबसे भीषण प्राकृतिक विपदा का अनूठा अध्ययन है 1934 के भूकंप के बड़े दूरगामी परिणाम हुये। इसने सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन को भी प्रभावित किया। डॉ राजेन्द्र प्रसाद के नेतृत्व में पीड़ितों की मदद के लिए सराहनीय प्रयास किये गये। प्रान्तीय एवं राष्ट्रीय स्तर के नेताओं का ध्यान इस भीषण प्राकृतिक आपदा ने अपनी ओर खींचा। गाँधी ने इसे समाज में व्याप्त हुआछूत जैसे पापजन्यकृत या प्राकृतिक प्रकोप माना पर वे विहार की इस आपदा से अत्यन्त दुखी हुये और स्वयं विहार आकर इस आपदा की घड़ी में पीड़ित जनता के साथ खड़े हुये एवं छूआछूत जैसे सामाजिक बुराईयों के विरुद्ध लड़ने के साथ कई रचनात्मक कार्यों में जनता को लगने का आधान किया। इस तरह इस पुस्तक के प्रकाशित होने से कई ऐसे पहलुओं का उद्घाटन जो आज तक नहीं हुआ था।
₹ 199 ₹221
221
Pages : | 153 |
Made In : | India |