भारत में ऊर्जा समस्या एवं समाधान ( Bharat mein Urja samasya Avm samadhan )
वर्तमान युग मशीन का युग है और मशीनों के प्राण शक्ति (ऊर्जा) के साधन हैं। अतः यदि वर्तमान युग को शक्ति का युग कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आज ऊर्जा हवा एवं पानी की तरह महत्त्वपूर्ण हो गया है। उद्योग से लेकर शिक्षा एवं अनुसंधान की हर गतिविधियाँ इसी पर आश्रित है। ऊर्जा की उपलब्धता जीवन की गुणवत्ता एवं विकास का मूल निर्धारक है। 153 देशों में सांख्यिकीय आँकड़ों का अध्ययन करने के पश्चात् फिलिक्स फ्रेमोंत (Felix Fremont) ने बतलाया है कि प्रति व्यक्ति आय तथा प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत में निकट का संबंध है। ई. ए. जी. रोबिन्सन के अनुसार, जब विश्व में ऊर्जा खपत को 2 प्रतिशत वृद्धि होती है तो औद्योगिक उत्पादन में 3 प्रतिशत वृद्धि होती है । विश्व स्तर पर देखा जाए तो विकसित देशा में प्रति व्यक्ति ऊर्जा उपभोग अल्पविकसित देशों की तुलना में कहीं अधिक है। इसलिए भारत सरकार ने नियोजन काल से ही ऊर्जा क्षेत्र को प्रोत्साहन दे रही है। देश में आजादी के समय (1947) ऊर्जा उत्पादन क्षमता 1362 मेगावाट था जो 31 मई, 2011 तक 2,02,978 मेगावाट हो गया। भारत विश्व का 11वाँ सबसे बड़ा ऊर्जा उत्पादक देश है और यह कुल ऊर्जा का 2.4 प्रतिशत उत्पादन करता है। भारत विश्व सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता देश है और यह कुल कर्जा का 3.7 प्रतिशत उपभोग करता है।
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