भारत में दलित महिलाओं का सशक्तिकरण आंदोलन (Bharat mein dalit mahilaon ka sashaktikaran Aandolan)
भारत में दलित महिलाओं का सशक्तिकरण आंदोलन (1920-2000 में महिलाओं को सशक्तिकरण की प्रक्रियाओं को रेखांकित किया गया है। दलित महिलाओं को तरह राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक क्षेत्रों में शोषित और अपमानित होना पड रहा है। इन सारे अपमानों को इलते हुए दलित महिलाओं ने अपने संपनों के द्वारा अपने आप को सशक्त करने का प्रयास शुरू कर दिया है और इसका प्रतिफल भी उन्हें मिलने लगा है। जोतिबा फुले एवं सावित्री बाई फुले के नेतृत्व में किस तरह दलित महिलाएँ संघर्षशील बनी। 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झलकारी बाई, उदा देवी, महावीरी देवी नामक दलित महिलाओं ने अंग्रेजों का डटकर मुकावना किया इन सबका वर्णन इस पुस्तक में हैं। इसके बाद धीरे-धीरे दलित महिलाएँ डॉ० साहेब अम्बेडकर पेरियार बाबा रामचन्द्र के नेतृत्व में अपने आंदोलन को आगे बढ़ाया। गोपाल गुरु ने जय'दलित तुमन स्पोन्स डिफरेन्टली' नामक लेख लिखा। इस लेख ने दलित महिलाओं के आंदोलनों को एक नवीन दृष्टिकोण प्रदान किया। मीनाक्षी मून, उर्मिला पवार, शर्मिला रे बामा, रूथ मनोरमा, रजनी तिलक आदि ने भी अपने लेखों और कायों द्वारा दलित महिलाओं के संघों को आगे बढ़ा सबकी जानकारी के प्रयास के तहत हो पुस्तक तैयार हो पा रही है। प्रस्तुत शोध प्रबंध दलित महिलाओं का सशक्तिकरण आंदोलन (19200-2000): एक विश्लेषण में दलित महिलाओं की सशक्तिकरण प्रक्रिया को रेखांकित किया गया है। दलित महिलाओं को किस तरह सभी क्षेत्रों में परेशानी और अपमान का सामना करना पड़ रहा है इन सबको चर्चा की गयी है। किन्तु अनेक परेशानियों एवं बाधाओं के बावजूद अपने साहस के बल पर दलित महिलाएँ शक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ रही है। महिला सशक्तिकरण आज एक आधारभूत आवश्यकता समझा जाने लगी है। किन्तु दलित महिलाओं के संदर्भ में आज भी यह विचारणीय प्रश्न बनी हुई है। इतिहासकारों ने भी इस दिशा में प्रयास किया है, कन्तु उनका प्रयास ज्यादातर दलित पुरूषों तक हो सीमित होकर रह गया है। इसलिए इस उपेक्षित विषय को हम का विषय बनाया।ि
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