भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में बिहार के महानायकों की गौरव गाथा (Bhartiya Swatantrata Aandolan Mein Bihar Ke Mahanayakon Ki Gaurav Gaatha)
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को विश्व का एक विलक्षण आन्दोलन माना गया है। इस आन्दोलन में समाज के सभी वर्ग के लोगों ने बढ़-चढ़ कर भागीदारी की। बिहार प्रान्त के लोगों ने इस आन्दोलन में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और ब्रिटिश साम्राज्यवाद को जड़ से उखाड़ने में सफलता हासिल की। इस आन्दोलन में मौलाना मजहरुल हक, ब्रजकिशोर प्रसाद, राजेन्द्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण, जगजीवन राम, श्रीकृष्ण सिंह एवं अनुग्रह नारायण सिंह जैसे नेताओं ने महती भूमिका निभाई, लेकिन कई और प्रमुख व्यक्तियों ने इस आन्दोलन में अपना सर्वस्व न्योछावर किया लेकिन इतिहास के पन्नों में वे गुम से रहे। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने वैसे ही कुछ स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन एवं व्यक्तित्व का गंभीरतापूर्वक अध्ययन किया है, और यह स्थापित किया है कि इन स्वतंत्रता सेनानियों ले बिहार राष्ट्रीय आन्दोलन को काफी मजबूत आधार प्रदान किया। ऐसे ही असंख्य स् सेनानियों ने बिहार के राष्ट्रीय आन्दोलन को काफी मजबूत आधार प्रदान किया। ऐसे ही असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों के अविरल संघर्ष के कारण ही ब्रिटिश साम्राज्यवादियों को भारत छोड़ कर वापस इंग्लैण्ड लौटना पड़ा। लेखक ने मौखिक स्रोतों पर जोर देते हुए इस पुस्तक को अत्यन्त प्रामाणिक बनाया है। आशा है कि बिहार के स्वतंत्रता सेनानियों के सम्बन्ध में काम करने वाले छात्रों एवं सुधी पाठकों के लिए यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगा। देश को आजादी मिलने के उपरान्त इतिहासकारों ने अपने ढंग से स्वतंत्रता संग्राम इतिहास लिखना शुरु किया। बिहार में चले राष्ट्रवादी आन्दोलन पर कालिकिंकर तीन खंडों में "बिहार में स्वातंत्र्य आंदोलन का इतिहास" की रचना की। यह पुस्तक कई दृष्टि से प्रांतीय एवं क्षेत्रीय इतिहास लेखन में मील कर पत्थर साबित हुगी लेकिन इसकी अपनी सीमाएँ थीं। इन खंडों में बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानी उचित नहीं पा सके। डॉ० अमित राज ने ऐसे ही कुछ स्वतंत्रता सैनानियों को अपने अध्ययन का विषय बनाया है। डॉ० राज मेरे छात्र रहे हैं। इन्होंने पूरी लगन एवं निष्ठा के साथ इन स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन एवं योगदानों की विवेचना की है। इन सेनानियों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी हर संभव कुर्बानी दी और अपने देश राज्य के इतिहास को समृद्ध किया। लेखक ने बिहार राज्य अभिलेखागार के अतिरिक्त स्थानीय अभिलेखागारों में संरक्षित सामग्रियों का उपयोग किया है। साथ ही जीवित स्वतंत्रता सेनानियों के साक्षत्कार भी लिये हैं। जन साधारण के द्वारा दर्ज ये सामग्रियों का भी इन्होंने भरपूर उपयोग किया है। फलतः इनको पुस्तक से मजबूत आधार पर खड़ी है। मैं आशा करता हूँ कि यह पुस्तक इतिहास के एवं साधारण पाठकों के लिए समान रूप से उपयोगों साबित होगी।
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Pages : | 153 |
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