मगही की संयुक्त क्रियाओं का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन (Magahi ki sanyukt kriyaon ka bhasha vaigyanik adhyayan) BookHeBook Online Store
मगही इस देश की प्रतिष्ठित लोक भाषा और भाषा है। मग समूह के वासियों से जुड़े मलद और कारूष जैसे प्राचीन शालि-प्रधान जनपद की भाषा मगही अग्रसरीभूत अपभ्रंश और मागधी- अर्द्धमागधी को प्रतिविम्बित करती है । संयुक्त क्रियाओं पर केन्द्रित यह पुस्तक यास्क, पतंजलि और पाणिनि की परंपरा का स्मरण दिलाती है। भारत वर्ष में व्याकरण की महिमा सदैव रेखांकित रही है। यहाँ तो काव्यशास्त्र को 'व्याकरणस्य पुच्छम्' कहा गया है। जैसा कि पुस्तक अवलोकन से ज्ञात होता है, मगही की संयुक्त क्रियाओं पर भी, क्रियोली की संयुक्त क्रियाओं की तरह, अंग्रेजी भाषा की संयुक्त क्रियाओं का चलत प्रभाव पड़ा है मगही को संयुक्त क्रियाओं का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन नामक पुस्तक का सा डॉ० कुमाइन्द्रदेव ने योनिष मनस्कार के साथ किया है। मगही भाषा प्रायोन जनपद को प्राचीनतम भाषा रही है । मगही किस प्राचीन भाषा से उद्भूत हुई ह विवादास्पद एवं विषमवादी है। कुछ भाषावैज्ञानिक इसे मागधी प्राकृत एवं न मानते हैं। भगवान बुद्ध की धर्मदेशना की भाषा मागधी रही है. संकेत “सा मागधों मूलभासा" नामक वाक्य से प्राप्त होता है। कुछ विद्वानों ने बुद्धको धर्मदेशना को भाषा को मागधी कहा है जो आज पति के नाम से है। सिद्धों को भाषा भी मगही रही है। और इसी भाषा में सिद्धों में अपनी साधनात्मक भाषा को अभिव्यक्ति समग्रता को साथ की है। प्रस्तुत ग्रंथ नौ परिवर्ती में विभक्त है जिसमें हों की संयुक्त क्रियाओं का विश्लेषण वैज्ञानिक ढंग से किया गया है। क्रिया के बिना वाक्य की संरचना नहीं होती है। इसी तथ्य का प्रतिपादन करते हुए संस्कृत के देवकरणों ने “एकलिंग वाक्यम्" में किया है। शून्य परिबन के पश्चात् प्रथम परिवर्त में मगही भाषा के उद्भव और विकास का विवेचन तुलनात्मक दृष्टिकोण से किया गया है के सर्वथा अनुबंध है। द्वितीय परिवर्त में प्राचीन आर्य भाषाओं में प्राप्त क्रिया संरचना पद्धति का विवेचन उपन्यस्त है। तृतीय परिवत्र्त में मगहों को संयुक्त क्रियाओं के विकास को ऐतिहासिक विवधता को गई है। चतुर्थ परिवर्त में मगहों की संयुक्त क्रियाओं के निर्माण में आर्य एवं आर्यतर भाषाओं के प्रभाव का प्रदर्शित करने का अवान्त प्रयत्न किया सद है जो भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सर्वथा अभिषव्य है। पंचम परिवर्त में संयु को नायक पद्धति का विवेचन किया गया है। free किया और साधक क्रिया का भी विश्लेषण उपनिबद्ध है। पृष्ठ परिवर्त में पूर्व किया और सहयोगी किया का मुख्य मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है। सप्तम् परिवर्त में संयुक्त क्रियाओं का जो प्रस्तुत किया गया है, यह सर्वथा पोक्ति एवं समीचीन है। अष्टम् परिवर्त में का अर्थ-वैज्ञानिक विश्लेषण उपनिषद्ध है। किया बहुविद्या होती है, उसमें संयुक्त क्रियाओं का योगदान विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।।
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Pages : | 153 |
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