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मगही लोक महाकाव्यों का काव्यशास्त्रीयअनुशीलन (Magahi Lok Mahakaviyon Ka Kavyashastriya Anushilan)

प्रस्तुत ग्रंथ का संबंध मगही लोकवार्ता के तात्विक अनुशीलन से है। विश्व-वाङमय में भारतीय लोकवार्ता का विशिष्ट स्थान है। भारत के मनस्थियों ने ज्ञान-विज्ञान एवं कला-संस्कृति की पीयूष धारा के दो मूलभूत स्रोतों का निर्धारण किया है, वे हे लोक' और 'वेद'। कर्विमनीषियों ने इन्हें लोके च महावाक्य द्वारा संबोधित किया है। लोकनायक महाकवि तुलसीदास ने 'मानस' के अनेक स्थलों पर उपर्युक्त अवधारणा को लोकहु वेदहु की उक्ति द्वारा व्यजित किया ह। भारतीय साहित्य की विपुल संपदा की इन दो अजय धाराओं को इस राष्ट्र की मेघा ने अपनी भावयित्री और कारयित्री प्रतिभाओं द्वारा महनीयता प्रदान की है। लोक और वेद ये दोनों शब्द अपने आधारभूत अर्थी की विविध आमाओं को व्यजित करते हैं। 'वेद', निगूढ ज्ञान सर्वदर्शित सामूहिक भावराशि की सहज अभिव्यंजना का वाचक है। इस उपर्युक्त संदर्भ मे यह भी उल्लेखनीय है कि वेद और लोक, ये दोनो वस्तुतः ऐसे विशाल तट है, जिनके बीच शताब्दियों से मानव-समाज की बौद्धिक, रागात्मक और भौतिक सत्ताओं की जल-राशि एक-दूसरे में निमज्जित होती हुई एक-दूसरे को संपूरित करती रही है। इसी प्रसंग में भारत और पश्चिम के चिंतकों ने अपने अनेक महाकाव्यों को मूलतः लोक-परम्परा से विकसित माना है। इस संदर्भ में भारत के आदि काव्य रामायण और महाजीवन कथा-कोष महाभारत आदि को उद्धृत किया जाता रहा है। पश्चिम के अध्येताओं ने भी ग्रीस, रोम, 'जर्मनी, फ्रांस आदि की अनेक महाकाव्यात्मक कृतियों के प्रस्थान-स्थल के रूप में लोक-वार्ताओं के प्रभाव को माना है। यहाँ तक की ईरान के शाहनामा ऐसी रचनाओं में भी लोकवार्तात्मक तच्चों के असर को भी उजागर किया गया है।


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