मिथिला की त्रासदी बाढ़और सुखाड़ (Mithila Ki Traasdi Baadh Aur Sukhaad)
उत्तर बिहार कालापरिक्षेत्र नदीमातृक प्रदेश माना जाता है जहाँ नदियों का एक विस्तृत-सा जाल फैला हुआ है। ये नदियाँ बरसात में जहाँ रौद्र रूप धारण कर बाढ़ का ताँडव नृत्य करती हैं, वहीं अधिकांश नदियाँ साल के छः महीने नाले में तब्दील हो जाती हैं। परिणामतः मिथिला एक ही साथ जल की प्रचुरता एवं अभाव दोनों परिस्थितियों से पस्त है। आजादी के बाद बहुउद्देशीय परियोजनाओं, बाँधों और नहरों का निर्माण किये जाने के बावजूद मिथिला जल के दोहरे संकट से मुक्त नहीं हो पाया। परिणामतः विकास के दौर में यह क्षेत्र लगातार पिछड़ता चला गया। भयंकर गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और पलायन मिथिला की स्थायी नियति बन गई। उजड़ते खेत-खलिहान, सूने होते गाँ रोजी-रोटी के लिए पलायन करते लोग, मिथिला के ग्रामीण अंचल की त्रासदी बन गई है। इन पर तब तक काबू नहीं पाया जा सकता जब तक कि मिथिला में जल का समुचित प्रबंधन नहीं किया जाय क्योंकि एक ही साथ बाढ़ एवं सुखाड़ की समस्या के स्थायी समाधान के द्वारा ही उजड़ते मिथिला को फिर से बसाया जा सकता है।
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