यथार्थ (Yatharth)
कविता एक अनमोल विद्या है। यह एकांत से साक्षात्कार है। कविता सच है । कविता उद्गार है। यह चिन्तन और कल्पनाशीलता को कलमबद्ध करने वाली कड़ी है । कविता भावना है निश्चल आभास है । यह स्वस्थ मानसिक संतुलन का पर्याय है। एक ईमानदार प्रयास है सच को साबित करने का " यथार्थ से दो चार होना भी कविता है" । कविता एक अमर आग है कविता एक अमर राग है जो कोटि-कोटि को जड़ चेतन को जल थल अंबर को उद्वेलित कर सकती है प्रेरित कर सकती है । कविता अतीत है, वर्तमान है, भविष्य है । इसमें तीनों कालों को, संसार की संपूर्ण क्षमताओं, विलक्षणताओं, संगति और विसंगतियों, अनुभवों, अनुभूतियों, एहसासों, पीड़ा, दर्द और प्रसन्नता को दर्शाया जा सकता L कविता समकालीनता का आईना है तो कालान्तर का दर्पण भी । मानो जल में परछाई निहारते निहारते कोई कंकर गिर पड़ा हो और गोल गोल छोटी धाराएँ बह निकली हों वहाँ तक जब तक कि वो किनारे को जमीन से टकराकर अपना अस्तित्व ना खो बैठें। ठीक इसी प्रकार कविता भी अपनी क्षमता और सार्थकता लिए समाज में यूँ ही फैलना चाहती है उसके अंतिम छोर तक । लेकिन कविता में कविता अवश्य होनी चाहिए उसमें लय और छंद की उतनी ही आवश्यकता है जैसे अचार में नमक और चाय में चीनी की । सच “यथार्थ " और जीवन की सच्चाइयों से ओत-प्रोत लिखी गई कविता की अपनी अलग महत्ता है । बात दिल को छू जाए और मन की चीरती. निकल जाए, दोहरी जिन्दगी पर अट्ठास हो, बुराई का मर्दन हो, राजनीति पर टिप्पणी हो, कुप्रथा पर प्रहार हो और व्यवस्था पर व्याय है। इस संकलन की पहली कविता है 'माँ' विश्व भर की अनन्त शक्ति की परिकल्पना के बिना संभव नहीं। यह आस्था एक नए आयाम को जन्म देने वाली है और यहीं से एक रथ यात्रा प्रारम्भ होती है। कवि की अनुभूति एक क्षण विशेष को भी शाश्वत का सामर्थ्य रखती है। 'किताबें" हो या "मेरा पता", "अमीर हो या उम्र ""सर" हो या "आवाज"] ये सभी रचनाएँ अपनी लघुता में विशद है क्योंकि इनके भीतर से संवेग का लाता फूटता है। छिपी हुई वैचारिकता हिमालय का उन्नत शिखर हो और उसकी संवेदनशीलता सागर जैसी गहरी हो से दोनों तत्व मिलकर किसी भी रचना को कालजयी महत्व न करते है। अपने आप से प्रश्न भी करती है। सृष्टि के प्रारम्भिक छोर पर कुछ इसी तरह को जानने की जिज्ञासा दार्शनिक मन्त्रों के भीतर उत्पन्न हुई है।
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Pages : | 153 |
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