राष्ट्रीय आंदोलन में वकीलों का योगदान (Rashtriy Aandolan Mein vakilon ka Yogdan)
राष्ट्रीय आंदोलन में बकीलों के योगदान (1905-1947) नाक इस पुस्तक में राष्ट्रीय आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में बकीलों के योगदान को रेखांकित किया गया है। इस पुस्तक के माध्यम से यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि राष्ट्रीय आन्दोलन को गति प्रदान करने एवं भारत की समस्त जनता को राष्ट्रीयता की विचारधारा से जोड़ने के लिए वकीलों का यह वर्ग किस तरह से प्रतिबद्ध था । राष्ट्रीयता की धारा बदलने एवं इसकी धार तेज होने के साथ ही यह वर्ग कैसे राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ अपना सामजस्य बैठाता है, वह कौन सी एसी परिस्थिति श्री. उनका सामाजिक-राजनीतिक आधार क्या था जिसके कारण वकील निर्भिक होकर राष्ट्रीय अन्दोलन का नेतृत्व प्रदान कर रहे थे, इसे भी दिखाने का प्रयास किया गया है। पुस्तक के मूल में राष्ट्रीयता की उत्पत्ति एवं 1905 के स्वदेशी न्दोलन के साथ गांधीवादी आन्दोलन एवं राष्ट्रीयता से प्रेरित रचनात्मक कार्यक्रमों को भिन्न भिन्न अध्यायों के माध्यम से उल्लिखित करने का प्रयास किया गया है। आशा है कि यह पुस्तक आमजनों एवं शोध छात्रों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। भारत में इतिहासलेखन की दृष्टि से अबतक प्रर्वाधिक विवादास्पद पहल राष्ट्रीय आन्दोलन है जिसमें देश के सभी वर्ग के लोगों ने अपनी भूमिका का निमडन किया था । लेकिन भिन्न-भिन्न इतिहासकारों ने अपनी विचारधारा के अनुकूल उन सभी वर्गों एवं प एक भूमिकाओं का विश्लेषण किया है। इसी परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभान एवं नेतृत्व प्रदान करने वाले वकीलों के वर्ग पर कुछ लिखने की इच्छा म अन्दर उत्पन्न हुई। इस विषय पर व्यापक समझ से मुझे प्रा. जोहान सन्दव . सिंह पूर्व कुलपति विआर. अ.वि.वि.) ने प्रदान किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय आन्दोलन में सिर्फ प्रासंगिकता ही नहीं थी बल्कि उसके कौर राष्ट्रों को पना भी नहीं था। यदि कहा कहाँ परिस्थितियों के नजर है, यह आज भी राष्ट्र की सेवा में सदैव तत्पर है। इस पुस्तक के लिए आवश्यक सामग्री एवं संदर्भग्रंथ उपलब्ध कराने के लिए मैं इतिहास विभाग के पुस्तकालय के सभी का पद कॉलेज पुस्तकालय, सन्द पटना विवि के सभी कर्मियों, राज्य अभिलेखागार आदि के प्रति आभारी है।
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Pages : | 153 |
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