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विमर्श के प्रसंग ( Vimarsh Ke Prasang )
इस संकलन के समीक्षात्मक आलेखों का फलक बहुत व्यापक है। निराला से लेकर महादेवी वर्मा तक और तुलसीदास से लेकर रामचन्द्र शुक्ल तक अपनी नई अनुसंधानात्मक प्रतिभा का परिचय देते हुए युवा समीक्षक डॉ० सम्पदा पाण्डेय ने प्रधानतया व्यंग्य लेखन और विमर्शों की पड़ताल पर अपने को केन्द्रित किया है। नारी विमर्श और व्यंग चर्चा स्वभावतः उनकी विचारधारा की पीठिका है। इन आलेखों से डॉ० सम्पदा पाण्डेय ने अपनी वैचारिक नव्यता और भव्यता का परिचय अनवरत दिया है। इसलिए विमर्श के प्रसंग की पठनीयता और विशिष्टता सुनिश्चित है। यह संकलन कई मौलिक प्रसंगों से जुड़ा है और विमर्शो का परिचय कराता है। इस संग्रह में इक्कीसवीं शताब्दी के वर्ष बीत जाने के बाद उभरे विभिन्न विमर्शो और उनकी पृष्ठभूमि में मौजूद रचनाकारों की चर्चा है। इसमें संग्रहीत सभी आलेख व्यंग्य-साहित्य, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, निराला, रामचन्द्र शुक्ल, सुणांशु, तुलसीदास, महादेवी वर्मा आदि की चर्चा के बहाने मी कहीं न कहीं विमर्शो का साक्षात्कार करते हैं। समीक्षा, काव्य सृजन, पत्रकारिता जैसे बहुत सारे रचनात्मक सरोकारों के पीछे से कोई न कोई विमर्श अवश्य कौंपता है। इसी विश्वास के साथ "विमर्श के प्रसंग' प्रस्तुत है कि समीक्षकों/पाठकों के बीच इस संग्रह को सराहा जाएगा।
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Pages : | 153 |
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