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वर्तमान मानव का उत्थान (Vartman Manav Ka Utthan)
प्रस्तुत कृति की रचना मानव उत्थान और संतुलन को नजर में रखकर की गई है। पुस्तक के सहज का जिक्र करके बताया गया धर्माधता का विरोध किया गया है। पुस्तक में प्रार्थना को परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग है। आज का यह सार्वभौमिक मांग है कि नारी का सम्मान होना चाहिए, इस बात की शुरुआत स्वयं नारी को ही करनी चाहिए। नारी को अपने गुण और काबिलीयत को नहीं भूलना चाहिए। बेटी का तिरस्कार वही महिला कर सकती है जो खुद का तिरस्कार करती हैं। कोई भी सामाजिक या अर्थिक समस्याएँ नारी की महानता को कम नहीं कर सकता। लेखिका ने पुस्तक में त्रुटियों के लिए क्षमा मांगने के साथ-साथ मानसिक और सामाजिक तथा धार्मिक बदलाव के लिए अपनी की गई कोशिशों को पुस्तक में महत्वपूर्ण स्थान देने का प्रयास किया है जो विशेष विवेच्य है। आज कामयाबी के बाद एक-एक करके हर पटना को प्रेरणा याद करना चाहती थी के एक-एक शब्द को अपने दिल में उतारती प्रेरणा की से भरे होने के बाद भी रही थी प्रेरणा आज अपने अती को तान से सज रही यो मानो से खोया हुआ कोई कीमती चीज उसे मिल यह डायसे उसी के लिखे हर लम्हे का एक-एक आज उसे इतनी प्यारे लग रहे थे।
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Pages : | 153 |
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