शोर (Shor)
शोर में रेडियो की दो विधा संकलन किया गया है- का रेडियो- रूपक और रेडियो नाटक । यह पुस्तक मुख्य रूप से उन लोगों के लिए उपयोगी हो सकता है जिन्हें रेडियो - रूपक लेखन और रेडियो नाटक लेखन में रूचि है, जो इस क्षेत्र में कुछ करना चाहते हैं पुस्तक की सभी रचनाएँ छोटी-छोटी है। रेडियो लेखन में आलेख लिखते वक्त लेखक को कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है, जो इस किताब से सीखा जा सकता है। चूंकि रेडियो आवाज की दुनिया है इसलिए दृश्य. भाव आदि को शब्दों में व्यक्त किया जाता है। लेखक को लिखते समय ध्वनिप्रभाव संगीत- उच्चरित शब्द. साक्षात्कार, मौन आदि को ध्यान में रखना चाहिए। कई शब्द जो रेडियो में प्रयुक्त नहीं होते उसकी अवहेलना की जानी चाहिए. एक अच्छे रेडियो- लेखक के द्वारा। शोर में रेडियो की दो विधा का संकलन किया गया है- रेडियो रूपक और रेडियो नाटक । यह पुस्तक मुख्य रूप से उन लोगों के लिए उपयोगी हो सकता है जिन्हें रेडियो रुपक लेखन और रेडियो नाटक लेखन में रूचि है। जो इस क्षेत्र में कुछ करना हते हैं। पुस्तक को भी छोटी-छोटी हैं। रेडियो लेखन में आलेख लिखते वक्त लेखक को कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है जो इस किताब से सौखा जा सकता है। चुकि रेडियो आवाज की दुनिया है इसलिए दृश्य भाव आदि को शब्दों में व्यक्त किया जाता है। लेखक को लिखते समय स्वनिप्रभाव संगीत, उच्चरित शब्द, साक्षात्कार, मौन आदि को ध्यान में रखना चाहिए। कई शब्द जो रेडियो में प्रयुक्त नहीं होते उसकी जलना की जानी चाहिए एक अच्छे रेडियो- लेखक के द्वारा। जैसे- अर्थात्, यदि एवम् इत्यादि जैसे शब्दों का शामिल ना ही किया जाए तो बेहतर है। रेडियो में यदि लेखक 'यह की जगह 'ये', यह की जगह 'वो' जैसे शब्दों को लिखता है तो वाचक बाचिका को अधिक परेशानी नहीं होती। यहाँ रेडियो आलेख रचना की प्रविधि है.. ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए। यद्यपि अच्छी आवाज का चयन, उचित ध्वनि आदि का समावेश करने के लिए प्रस्तुतकर्ता को पूरी-पूरी छूट होती है तथापि लेखक अपनी रचना से प्रस्तुतकर्ता का काम सहज कर सकता है। यद्यपि " शोर" में सभी रचनाएँ मेरी पहली पुस्तक के लिए ही सुरक्षित थी, मगर दूसरे को शामिल कर लिया गया था। खेर " शोर जब आपके हाथों में आ गई है तो क्यू न इसको रचनाओं पर एक दृष्टि दी जाए। पुस्तक के पहले हिस्से में रेडियो नाटक है।
₹ 259 ₹299
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Pages : | 153 |
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