हिंदी और बँगला की रूप रचना (Hindi aur Bangla ki roop Rachna)
बँगला और हिन्दी के के नैसर्गिक सम्बंध की सुदीर्घ परम्परा रही है । हिन्दी और बंगला भाषाओं की रूपरचना के तुलनात्मक अध्ययन से यह बात सर्वथा स्पष्ट हो जाती है कि दोनों भाषाओं की जननी एक है। हिन्दी और बँगला दोनों ही भाषाएँ अपभ्रंश से व्युत्पन्न हुई हैं। अपभ्रंश प्राकृत से, प्राकृत पालि से और पालि संस्कृत से विकसित हुई है। चूँकि हिन्दी और बँगला दोनों की जननी एक हैं, इसलिए दोनों ही भाषाएँ संगी सहोदरा है। जिस प्रकार एक ही माँ की दो संतान में बहुत कुछ समानता होते हुए भी कुछ अन्तर भी होता है. उसी प्रकार हिन्दी और बैंगला में भी स्वल्प भिन्नता है, किन्तु भिन्नता ऐसी भी नहीं कि जिनका दिशा निर्देश सहज सम्भव नहीं। भारत का प्रत्येक प्रबुद्ध नागरिक यह अनुभव करता है कि गौरवपूर्ण परम्परा को बनाये रखने के लिए राष्ट्रीय एकता अनिवार्य रूप से आवश्यक है। देश के कर्णधार राष्ट्रीय एकता की बात तो सर्वसम्मति से स्वीकार करते हैं, किन्तु जब का प्रश्न उपस्थित होता है तो वे टुकड़ों में बंट जाते हैं। दूसरी भाषा के प्रति कुछ लोग के मन में किंचित वैमनस्य का भाव उपस्थित हो जाता है। सूक्ष्म रूप से विचार करने पर यह बात सर्वथा स्पष्ट हो जाती है कि आर्यभाषा परिवार की हो बात कौन कहे, अनेक स्थलों पर आर्य और द्रविड़ परिवार की भाषाओं में भी समानता दिखाई पड़ती है। हिन्दी में प्रचलित कुछ तत्सम शब्दों से इस कथन की पुष्टि हो जाती है। परीक्षा, पाठ और मसूर शब्दों को उदाहरणस्वरूप लें। ये शब्द बंगला (परीक्षा, पाठ, मसूर), उड़िया(परीक्षा, पाठ, मसूर), असमिया (परीक्षा, पाठ, मनूर), पंजाबी (परीखिआ, पाठ, मसूर), गुजराती (परीक्षा, पाठ, मुमूर) और मराठी (परीक्षा, पाठ, सूर) में तो प्राय: समान रूप से प्रचलित हैं ही, तेलुगू (परीक्षा, पाठ, मुसूर) और कन्नड़ (परीक्षे, पाठ, मसूर) में भी इनकी स्थिति बहुत भिन्न नहीं। वैसे, मलयालम चें भी परीक्षा और पाठ क्रमशः परीक्षे और पाठम् के रूप में प्रचलित हैं। तद्भव शब्दों में गेहूँ, साड़ी और कलाकार-जैसे शब्दों को लें तो बँगला (गम, साडि, कलाकार) उड़िया (गहम, साड़ी, कलाकार), असमिया (गम, शारि, कलाकार), पंजाबी (कणक, साहड़ी, कलाकार), गुजराती (घर्ड, साड़ी, कलाकार) और मराठी (गेहूं, साड़ी, कलावन्त), तेलुगू (गोधुम, चीरे, कलाकार), कन्नड़ (गोधि, सोरे, कलाविद) और मलयालम (गोतम्युं, सारि, कलाकारन्) में भी इनके रूप ऐसे नहीं बदल जाते जो पहचाने न जा सकें। विदेशी शब्दों को तो भारत की प्राय: सभी भाषाओं ने समान रूप से अपनाया है। भाषा की दृष्टि से भारत बहुत सम्पन्न है।
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