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हिंदी संताली साहित्य का तुलनात्मक विश्लेषण (Hindi Santali Sahitya ka tulnatmak vishleshan)

एक सरल अवरोध संताल बालिका राजमहल- सुन्दर पहाड़ी पर्वत श्रृंखला के की बनदीवियों से निकल कर रेशमी शहर भागलपुर की भाग दौड़ और सभ्यता की कामे पहुँच कर विस्मित हो गयी। यन्यग्राम के भोले-भाले आदिवासियों और शहरी जिन्दगी की होशियारी में इतना अन्तर दीख पड़ा कि उलझन में पड़ गयी। गाँव का अपनापन, लता-पुष्पों और बनावली का आकर्षण, पर्वत माला का सम्मोहन, सब वार चार बुलाते हैं. बरबत्त स्नेह-पाश में बाँधते और भावना में ही मींच लेते हैं, लेकिन अभाव रूढ़ियों और पिछडेपन से निकलते और द्रुतगति से विकसित विश्व समाज के प्रकाश में नहा लेने की लालसा का वेग भी कम नहीं होत, तभी अपने आदिवासी समाज और सन्य संसार में एकसूत्रता का तार और सांमजस्य का स्वर भी ढूंढ़ने लगी। उच्च शिक्षा की सीढ़ियां चढ़ती पहले देहरी पार करने के क्रम में मूल रूप से बी मेरी भावना को मूर्त करने की प्रेरणा आखिर मुझे मिल ही गयी में स्वयं नहीं जानती थी मेरे लिये क्या कुछ हो सकता है किन्तु मेरी चेतना जगाने और एक आदिवासी स्त्री. रूप में मेरी दानता और सम्भावनाओं का अहसास करने के लिए देव योग से मेरे शिक्षक डॉ० कामेश्वर सहाय मुझे मिल गये। संताल परगने के अपने पूर्व कार्यानुभव से संचित साथ-बार और देख सपनों को साकार करने के प्रयोजन से भी उन्होंने संपाल समाज संस्कृति और उसके साहित्य के अनुशीलन के लिए मुझे प्रेरित तथा प्रोत्साहित किया।- विषय की नवीनता एवं समीचीनता के साथ तद्नुरूप अपनी जन्मजात राद्धता को परम से मुझेट हो जाना था। अनजान डगर पर एकाकी पढ़ना बड़ा कठिन होता है, खस तौर पर जनकि आगे-पीछे किसी के आये गये होने के का सहारा भी नहीं फिर भी उनकी प्रेरणा से आत्मविश्वास से भर उठी। इस तरह यह कार्य पूरा हुआ। मेरा यह प्रयास रहा कि संताली और हिन्दी के तुलनात्मक अध्ययन और पूरकतों की अवतारण द्वारा वाली को एक नयी दिशा दी जाय।ाा


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